प्राय: हर देश के निवासियों के लिए संगठित रहना प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण आवश्यकता रही है इसलिए वह कहते हैं कि यदि निर्मल राष्ट्र संगठित रहेंगे तो अत्यंत बलवान शत्रु को भी पराजित करना उनके लिए संभव होगा । इसी संदर्भ में वह आगे कहते हैं कि जीवन में कोई समय ऐसा भी आता है जब मनुष्य जीवन की वास्तविकता के बारे में सोचने लगता है मनुष्य जब किसी धर्मोपदेश को सुनता है तो उसके मन में धर्म आचरण की प्रवृत्ति जागृत होती है | जब मनुष्य किसी को अपने कंधे पर लादकर शमशान भूमि में जाता है तो उसे ऐसा प्रतीत होता है कि यह जीवन नश्वर है और जब मनुष्य किसी रोग से पीड़ित होता है तो प्राय: हाय-हाय करता हुआ प्रभु को याद करता है | चाणक्य कहते हैं कि यदि मनुष्य सदा इसी प्रकार के विचार मन में रखे तो वह संसार के बंधनों से छूट सकता है | इसी संदर्भ में वह आगे कहते हैं कि मनुष्य जब कोई दुष्कर्म करता है तो उसके बाद में पछताने लगता है अर्थात उसकी बुद्धि में एक परिवर्तन होता है यदि दुष्कर्म करने से पहले मनुष्य की बुद्धि उस दिशा में कार्य करें तो वह संसार के बंधनों से छूट सकता है |
मोक्ष प्राप्ति में बाधक कार्य की ओर संकेत करते हुए आचार्य का कहना है कि अभिमान मनुष्य को ले डूबता है यदि कोई व्यक्ति यह समझता है कि उसके जैसा तपस्वी, दानी, शूरवीर और ज्ञानवान कोई दूसरा नहीं तो यह उसका भ्रम है क्योंकि संसार इतना विशाल है कि उसमें एक से बढ़कर एक गुणी व्यक्ति हैं |
यहां एक सामान्य सी बात की ओर इशारा करते हुए आचार्य ने कहा है कि समीपता और दूरी का संबंध हृदय से है ना की स्थान से |
चाणक्य ने यहां एसी कूटनीति पूर्ण बात कही है कि जो किसी भी राज्य के लिए उपयुक्त हो सकती हैं उनका कहना है कि जो राज्य आप को हानि पहुंचाता है यदि आप में शक्ति से उसका निवारण करने की योग्यता नहीं तो उससे मित्रता गांठकर, मधुर व्यवहार का दिखावा करते हुए बुद्धि पूर्वक शक्तिहीन कर देना चाहिए |
आचार्य आगे कहते हैं कि राजा, अग्नि, गुरु और स्त्री आदि के ना तो अत्यंत निकट जाना चाहिए ना ही इनसे अत्यंत दूरी रखनी चाहिए | उदाहरण के लिए सामान्य सी बात है कि यदि व्यक्ति अग्नि के अधिक समीप जाएगा तो वह जलकर भस्म हो जाएगा इसलिए उन्होंने कहा है कि इन सब वस्तुओं का उपयोग मध्यम दूरी अथवा मध्यम अवस्था में करना चाहिए क्योंकि यदि इनके सेवन में सावधानी नहीं बरती जाएगी तो नष्ट होना निश्चित है वह कहते हैं कि जो व्यक्ति गुणी हैं उसी का जीवन सफल है इसमें किसी प्रकार का गुण नहीं कोई विशेष बुद्धि नहीं उसका जीवन व्यर्थ है |
इसी संदर्भ में आगे कहते हैं कि मनुष्य यदि संसार को अपने वश में करना चाहता है तो उसे दूसरों की निंदा करना छोड़ न देना चाहिए | समझदार व्यक्ति वही है जो समय के अनुकूल बात करता है अपने मान सम्मान के अनुरूप मधुर और प्रिय वचन बोलता है और क्रोध करते समय इस बात का अनुमान कर लेता है कि वह उसकी शक्ति के अनुरूप है या नहीं | इसी के साथ ही वह कहते हैं कि संसार की प्रत्येक वस्तु को मनुष्य विभिन्न दृष्टिकोण से देखते हैं स्त्री का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि योगी स्त्री के स्वरूप को घृणा की दृष्टि से एक लाश के समान देखता है, कामी व्यक्ति उसे हर प्रकार से सुंदर समझता है और कुत्ते की दृष्टि में वह एक मांस के लोथड़े के अलावा कुछ नहीं | सभी अपने भावों के अनुसार उसका दर्शन करते हैं इसलिए इस प्रकार की परस्पर विभिन्नता देखने में आती है | आगे चलकर चाणक्य बताते हैं कि बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि वह अच्छे कर्म, घर के दोष, स्त्री से सहवास और अपने संबंध में सुने हुए निंदित वचनों को कभी किसी दूसरे व्यक्ति के सामने प्रकट ना करें ।
चाणक्य का कहना है कि मनुष्य को कष्ट के समय मौन रहना चाहिए चीखने चिल्लाने से कोई लाभ नहीं होता उसे चाहिए कि वह सदैव धार्मिक कार्य में लगा रहे यथाशक्ति अच्छे कार्यों से धन का संग्रह कर्ता रहे | धन का संग्रह भी समय के अनुकूल समझा गया है | गुरु के कल्याणकारी वचनों को इकट्ठा कर रखना अत्यंत आवश्यक है यदि व्यक्ति इन चीजों का संग्रह नहीं करता तो उसका जीवन संकट में पड़ सकता है |
अंत में वह मनुष्य को सुखी जीवन बिताने के लिए मार्गदर्शन करते हुए कहते हैं कि मनुष्य को दुष्टो की संगति छोड़ देनी चाहिए | उसको सज्जनों के पास उठना बैठना चाहिए | दिन-रात उसे अच्छे कर्म करते रहना चाहिए और उसे यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि यह संसार अनित्य है इसलिए उसे सदैव अपना मन प्रभु के चिंतन में लगाए रखना चाहिए |
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