Tuesday, August 15, 2017

Chanakya Neeti : Part 16 (चाणक्य नीति : भाग 16)


इस अध्याय के आरंभ में चाणक्य ऐसे व्यक्ति के जन्म लेने को बेकार बताते हैं | जिसने इस संसार में आकर ना तो संसार के किसी सुख का उपभोग किया है और ना प्रभु की प्राप्ति के लिए कोई जतन किया है |

विशेष रुप से वेश्याओं के संबंध में चाणक्य ने अनेक स्थानों पर इस बात पर जोर दिया है कि उनका किसी व्यक्ति विशेष से प्रेम नहीं होता | उनका प्रेम केवल व्यक्ति के धन से होता है परंतु जो व्यक्ति हमेशा यह समझते हैं कि वेश्या उनसे प्रेम करती है वह मूर्ख ही है और उसी बहकावे में वे कठपुतली के समान उनके इशारों पर नाचते रहते हैं |


मनुष्य के स्वभाव के संबंध में आचार्य का कहना है कि अधिकांश व्यक्ति धन संपत्ति और सांसारिक सुख प्राप्त करने के बाद अभिमान करने लगते हैं | जो व्यक्ति इंद्रिय भोग की तृप्ति में लगा रहता है | उसके कष्ट कभी समाप्त नहीं होते और यदि स्त्रियां चाहे तो बड़े से बड़े तपस्वी व्यक्ति के तप को खंडित कर सकती हैं | इसी प्रकार जो व्यक्ति सदैव हाथ प्रसार कर मांगता रहता है उसका कभी सम्मान नहीं हो सकता और जो एक बार दुष्ट व्यक्ति के संपर्क में आ जाता है उसका जीवन भी कभी सुखी नहीं हो सकता |

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का उदाहरण देते हुए चाणक्य कहते हैं कि जब व्यक्ति के विनाश का समय आता है तो उसकी बुद्धि ठीक से काम नहीं करती वह भ्रमित हो जाता है जिस प्रकार श्रीराम सोने के मृग को पकड़ने के लिए उसके पीछे भागे जबकि सभी जानते हैं कि सोने का मृग नहीं होता श्रीराम भी इस सत्य को भली भांति जानते थे फिर भी स्वर्ण मृग के पीछे भागे |

मनुष्य की श्रेष्ठता किसी ऊंचे पद पर बैठने के कारण नहीं होती | उसके गुणों के कारण होती है यदि व्यक्ति में कोई गुण नहीं है तो अत्यंत धनी होने पर भी उसका सम्मान नहीं होता | मनुष्य के गुणों के संबंध में आचार्य ने एक और महत्वपूर्ण बात कही है उनका कहना है कि गुणी उसी को समझना चाहिए जिसके गुणों की प्रशंसा दूसरे लोग करते हैं अपनी स्वयं प्रशंसा करने से मनुष्य बड़ा नहीं बनता | गुणों के संबंध में यह बात और भी महत्व रखती है कि यदि ज्ञानवान व्यक्ति गुणी हैं तो उसके गुण उसी प्रकार विकसित हो जाते हैं जैसे सोने के आभूषण में जुड़ा हुआ रत्न परंतु उनका यह भी मानना है कि गुणवान व्यक्ति सर्वदा के लिए अकेला रहता है उसे दुख भी उठाने पड़ सकते हैं |


धन संग्रह करना चाणक्य की दृष्टि में बुरा काम नहीं है परंतु दूसरों को दुखी करके और अधर्माचरण से अथवा अपनी दीनता दिखाकर धन इकट्ठा करना उचित नहीं | धन का लाभ तभी है जब उसका ठीक से उपयोग किया जाए | धन एक ऐसी वस्तु है जिसकी कामना व्यक्ति हर समय करता रहता है | धन के संबंध में उसकी इच्छा कभी पूरी नहीं होती | धन का सही उपयोग यही है कि उसे परोपकार में लगाया जाए |

धन के ही संबंध में आगे चलकर चाणक्य एक और महत्वपूर्ण बात कहते हैं कि संसार में तिनका एक अत्यंत हल्की वस्तु है परंतु तिनके से भी रुई अधिक हल्की होती है रुई से भी हल्का दूसरों से धन की याचना करने वाला व्यक्ति होता है | वायु तिनके और रुई को उड़ाकर ले जाती है परंतु याचक को क्यों नहीं उड़ाती इसका कारण संभवता यह है कि वायु को डर लगता है कि याचक उससे कुछ मांग ना बैठे इस प्रकार उन्होंने याचक को सबसे अधिक अपमानित व्यक्ति माना है | कुछ लोग हर समय हर स्थान पर अपने दरिद्र होने का प्रमाण देते रहते हैं इस प्रकार के सभाव वाले व्यक्ति किसी से 2 मिनट बात करने से भी कतराते रहते हैं | जबकी मीठी बात कहने में किसी प्रकार का मूल्य चुकाना नहीं पड़ता | इस संसार में मनुष्य को अनेक कटु अनुभव होते हैं | प्रियवचन, सज्जनों की संगति दो ऐसी बातें हैं जिससे इस जीवन में कुछ शांति प्राप्त हो सकती है |


आचार्य चाणक्य का कहना है कि विद्या मनुष्य के कंठ में रहनी चाहिए पुस्तकों में लिखी विद्या से काम नहीं चलता है | इसी प्रकार वह धन भी काम नहीं आता जो दूसरों के पास होता है |

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