Sunday, August 6, 2017

Chanakya Neeti : Part 13 (चाणक्य नीति : भाग 13)


Everyday Learn New Things : चाणक्य ने अनेक बार मनुष्य की श्रेष्ठता को स्वीकार किया है | उनका कहना है कि यदि मनुष्य जीवन एक क्षण के लिए भी प्राप्त होता है तो उस काल में भी मनुष्य को श्रेष्ठ कर्म करने चाहिए और यदि उसका जीवन एक युग से भी अधिक हो तो भी उसे बुरे कर्मों में लिप्त नहीं होना चाहिए |



चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य को चाहिए कि वह जो समय बीत चुका है या जो आगे आने वाला है इसकी चिंता छोड़कर वर्तमान की ओर ध्यान दें समस्याओं का समाधान उसी में निहित है ।
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मनुष्य की सफलता उसके स्वभाव पर निर्भर करती है । वह स्वभाव से ही सज्जन पुरुषों और अपने माता पिता को प्रसन्न कर सकता है | महात्माओं का स्वभाव भी ऐसा होता है कि वह धन को तिनके की समान तुक समझते हैं यदि उनके पास अधिकाधिक धन हो जाए तो भी वह अभिमान नहीं करते हैं । उसी प्रकार नम्र होकर झुक जाते हैं जिस प्रकार फल से लदी हुई वृक्ष की शाखा | आचार्य का कहना है कि अपने बंधु बांधवों के प्रति कर्तव्य पूरे करते हुए उनसे इतना अधिक लगाव नहीं बनाना चाहिए की उनके बिछड़ने से कष्ट का अनुभव हो |

जो व्यक्ति सदैव सतर्क रहते हैं वह समय आने से पहले ही आने वाले कष्टों को रोकने के उपाय कर लेते हैं ऐसे व्यक्ति अपना जीवन सुख से बिता देते हैं परंतु जो भाग्य के भरोसे रहता है उसे कष्ट उठाना पड़ता है |

जैसा राजा वैसी प्रजा एक बहुत पुरानी कहावत है यह आचार्य चाणक्य के समय से ही प्रसिद्ध हुई दिखाई देती है चाणक्य कहते हैं कि जिस मनुष्य के जीवन में धर्म का अभाव है मैं उसको मृत व्यक्ति के समान समझता हूं और धर्म आचरण करने वाले व्यक्ति मरने के बाद भी जीवित रहता है ।

इसी संबंध में आचार्य कहते हैं कि जिस व्यक्ति ने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों में से एक के लिए भी पुरुषार्थ नहीं किया तो समझो कि उसका जीवन व्यर्थ है । शास्त्र, धर्म, अर्थ और काम को पुरुषार्थ मानते हैं मोक्ष उनकी दृष्टि में परमपुरुषार्थ है यह संकेत है कि इन तीनों की सार्थकता तभी है जब समस्त बंधनों से जीव मुक्त हो जाएगा |

दुष्ट व्यक्ति जब किसी के बढ़ते हुए यश को देखता है तो वह उसकी निंदा करने लगता है | भगवान श्रीकृष्ण ने भी मनुष्य के मन को ही मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र और सबसे बड़ा शत्रु बताया है क्योंकि उसके विचार ही उसे संसार की मोह माया में फसाए रखते हैं | जो उसके लिए बंधन के समान है | योगी मन को वश में करके उसके सभी बंधनों को काट सकते हैं |
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मनुष्य के कर्मों के संबंध में वह कहते हैं कि जिस प्रकार बहुत सी गायो में भी बछड़ा अपनी मां को पहचान लेता है और उसी के पीछे चलता है उसी प्रकार मनुष्य के कर्म ही मनुष्य का साथ देते हैं अर्थात वह जैसा कार्य करता है उसके अनुसार ही उसको फल भोगना पड़ता है |

कर्म के संबंध में चाणक्य आगे यह कहते हैं कि मनुष्य को कर्मों के अनुसार ही फल मिलता है और उसकी बुद्धि भी उसके द्वारा किए गए कर्मों के अनुसार ही कार्य करती है इतने पर भी विद्वान और सज्जन व्यक्ति सोच विचार कर कार्य करते हैं क्योंकि वह जानते हैं कि कुछ ऐसा भी है जिसे बुद्धि द्वारा नई दिशा दी जा सकती है |

चाणक्य अंत में मनुष्य के स्वभाव का वर्णन करते हुए कहते हैं कि सज्जन पुरुष अपने कर्तव्य अथवा अपने वचन से कभी भी विमुख नहीं होते जबकि संकट आने पर बड़ी से बड़ी प्राकृतिक शक्तियां भी मनुष्य का साथ छोड़ देती हैं |


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