Saturday, August 5, 2017

Chanakya Neeti : Part 12 (चाणक्य नीति : भाग 12)


Everyday Learn New Things :  अध्याय के प्रारंभ में चाणक्य उस ग्रहस्त को सुखी बताते हैं जिसके घर में मंगल कार्य होते रहते हैं । जिसकी संतान बुद्धिमान हो पत्नी मधुर भाषनी हो | जिसने सत्कर्मों से धन की प्राप्ति की हो | जिसके मित्र समय पर उसका साथ देने वाले हो, नौकर आदि उसकी आज्ञा का पालन करने वाली हो | जहां अतिथियों का स्वागत सत्कार होता हो | जो ग्रहस्त नित्य नियम से प्रभु की उपासना करता हो और जिस घर में प्रतिदिन श्रेष्ठ और स्वादिष्ट भोजन बनता हो | ऐसी ग्रहस्ती ही प्रशंसनीय होती है अर्थात ऐसा घर सदैव सुखी रहता है |

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दान का महत्व बताते हुए चाणक्य ने अनेक स्थानों पर कहां है कि दान देने से धन की कमी नहीं होती | हां योग्य और विद्वान ब्राह्मणों को ही दान देना चाहिए क्योंकि ऐसे व्यक्ति को दिया हुआ दान कई गुना होकर मिलता है | असल में देखा जाए तो धन का दान करना तो इसलिए भी लाभप्रद है क्योंकि ऐसा करके व्यक्ति को यश और पुण्य की प्राप्ति करता है जो धन की उपेक्षा बहुत ज्यादा समय तक रहने वाली है  |

इस संसार में नित्य ऐसे दुष्कर्म होते हैं जिनसे किसी के नष्ट होने का भय सा बना रहता है | जिस व्यक्ति ने अपने हाथों से कभी दान नहीं किया, कानों से कभी शास्त्र वचन नहीं सुने, आंखों से कभी सज्जन व्यक्तियों के दर्शन नहीं किए और जो कभी तीर्थों पर भी नहीं गया चाणक्य कहते हैं कि ऐसा जीवन व्यर्थ है |

होनी बड़ी प्रबल होती है यह बात सभी जानते हैं अपनी होनी अथवा भाग्य के कारण करील के वृक्ष पर पत्ते नहीं होते तो इसके लिए वसंत को दोषी नहीं माना जा सकता यदि उल्लू को दिन में दिखाई नहीं देता तो उसमें सूर्य का क्या अपराध है इसलिए जो कुछ भाग्य में लिखा है उसके प्रति किसी को दोष देना उचित नहीं एक बहुत ही उपयुक्त उदाहरण देकर आचार्य चाणक्य ने कहा है कि दुष्ट व्यक्ति के पास रहने से भी सज्जन व्यक्ति अपनी सज्जनता का त्याग नहीं करता जबकि सज्जन की संगती में आकर दुष्ट सज्जन बन जाता है |


सज्जनों के संबंध में आचार्य का कहना है कि उन के दर्शन मात्र से पुन्य फल की प्राप्ति होती है परंतु जहां कोई सज्जन पुरुष नहीं होता वहां का जीवन भी विष के उस कीड़े के समान होता है जो विष में ही उत्पन्न होता है और विष में ही मरता है | इस श्लोक का आशय यह भी हो सकता है कि जिस प्रकार विष का कीड़ा विष से अप्रभावी रहता है उसी प्रकार दुष्टो में रहने वाला भी सज्जन व्यक्ति के दुर्गुणों से कोसों मिल दूर रहता है |

चाणक्य ने आदर्श घर उसे माना है जहां ब्राह्मणों का सम्मान होता है उनकी सेवा होती है जहां वेदमंत्रों और शास्त्रों की ध्वनि गूंजती रहती है और अग्निहोत्र से वातावरण सुगंधित रहता है | जहा यह सब नहीं होता ऐसा धर्म कर्म रहित घर शमशान के समान होता है ऐसे घर में नकारात्मक उर्जा का निवास हो जाता है | चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य को चाहिए अन्य बातों की ओर से ध्यान हटाकर अपना मन धर्म के कार्यों में लगाएं |
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आचार्य के अनुसार जो व्यक्ति दूसरों की स्त्री को माता के समान देखता है, दूसरे के धन को तुच्छ समझता है और सब प्राणियों को अपने समान मानता है, सदैव धर्म में लगा रहता है, कटु वचन नहीं बोलता, जिसमें दान देने की प्रवृति होती है, मित्रों से जो किसी प्रकार का छल कपट नहीं करता, गुरु के प्रति जो नम्र रहता है, जिसका अंत करण समुंदर के समान गंभीर है, जो आचरण में पवित्र, शास्त्र को जानने वाला और हर समय प्रभु को याद रखने वाला है वही सज्जन है ।

भगवान राम के संबंध में चाणक्य कहते हैं कि वह कल्पवृक्ष से भी श्रेष्ठ हैं, सुमेरु पर्वत से भी अधिक धनी हैं उनका तेज सूर्य से भी अधिक है वह कामधेनु से भी अधिक मनोकामनाएं पूरी करने वाले हैं इसलिए उनकी उपासना करनी चाहिए ।

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