Friday, August 4, 2017

Chanakya Neeti : Part 11 (चाणक्य नीति : भाग 11)



Everyday Learn New Things :  चाणक्य कहते हैं कि कुछ बातें मनुष्य में स्वाभाविक रूप से होती हैं उन्हें केवल अभ्यास से प्राप्त नहीं किया जा सकता। दान में रुचि, मधुर भाषण की इच्छा, मधुरता, वीरता यह गुण मनुष्य को स्वभाव से ही प्राप्त होते हैं । अभ्यास से केवल इन में वृद्धि की जा सकती है, तराशा जा सकता है बस । चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य को अपना स्वभाव नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि जो अपने स्वभाव और कर्म को छोड़कर दूसरे के आश्रय में जाता है वह नष्ट हो जाता है ।  

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चाणक्य कहते हैं कि मोटे शरीर को देखकर ऐसा नहीं मानना चाहिए कि वह बहुत बलवान हो सकता है । लंबे चौड़े शरीर वाला हाथी छोटे से अंकुश से वश में कर लिया जाता है । इसी प्रकार दीपक की छोटी सी लो वर्षो के अंधकार को पलभर में नष्ट कर देती है । इतना ही नहीं अपने से कई गुना लंबाई-चौड़ाई में वह प्रकाश फैलाती है । बड़े-बड़े पहाड़ों और शिलाओं को हथौड़े की चोट से तोड़ा जा सकता है जबकि हथौड़े का आकार भार पहाड़ों और शिलाओं से बहुत कम होता है इसलिए लंबे चौड़े शरीर को देख कर यह नहीं मान लेना चाहिए कि वह बलवान है ।

चाणक्य के अनुसार विद्यार्थी को विद्या प्राप्ति के समय घर से मोह नहीं रखना चाहिए यदि वह घर के मोह में फंसा रहेगा तो उसे विद्या प्राप्त नहीं होगी उनका कहना है कि दुष्ट व्यक्ति को जितना भी समझाया जाए वह दुष्ट ही रहता है उसका सज्जन बन्ना उसी प्रकार असंभव है जैसे नीम के पेड़ को दूध, घी, चीनी आदि से सींचने पर भी उसमे मिठास पैदा नहीं की जा सकती इसी संबंध में वह आगे कहते हैं कि जिस मनुष्य का अंत करण शुद्ध नहीं, यदि वह अनेक बार तीर्थयात्रा भी करता है तो भी वह पवित्र नहीं हो सकता |

आचार्य का कहना है कि गुणों की श्रेष्ठता को समझना प्रत्येक व्यक्ति के बस की बात नहीं | जो उसके गुणों को नहीं समझता वह उसकी निंदा करने लगता है | विद्यार्थी के लिए कुछ और हिदायत देते हुए चाणक्य कहते हैं कि विद्यार्थी को काम, क्रोध, लोभ, मोह, खेल, तमाशे और सिंगार तथा अधिक सोने से बचना चाहिए क्योंकि यह दुर्गुण है और इनसे उनके मन में विशेप पैदा होता है इनसे उसकी ऊर्जा का व्यय होता है जिसे एकाग्रता पर असर पड़ता है ।

ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि वर्णों के संबंध में बताते हुए चाणक्य कहते हैं कि जो व्यक्ति कंदमूल फल खा कर अपना जीवन बिताता है जो प्रतिदिन पितरों का श्राद्ध करता है ऐसे ब्राह्मण को ऋषि कहा जाता है | इस प्रकार ऋषि वह है जो संयमी है अपने पूर्वजों के प्रति जिसके मन में सम्मान का भाव है जो व्यक्ति एक समय के भोजन से संतुष्ट रहता है तथा अध्ययन-अध्यापन का काम करता है उसे द्विज कहते हैं | जो ब्राह्मण संसार के कामों में लगा हुआ है और पशुपालन खेती आदि करता है उसे वैश्य कहा जाता है | जो ब्राह्मण की सेवा करता है और शराब, मांस आदि बेचकर अपनी जीविका चलाता है उसे शूद्र कहते हैं | उनका कहना है कि ब्राह्मण का कर्तव्य यह है कि वह अन्य लोगों की कार्य सिद्धि मैं उनकी सहायता करें | दूसरों से छल कपट ना करें | जो ब्राह्मण सार्वजनिक स्थलो जैसे बावड़ी, कुआ, तालाब, मंदिर और पार्क आदि को अपवित्र करता है वह मलेछ है |

जो ब्राह्मण और विद्वानों के धन को चुरा लेता है । दूसरों की स्त्रियों का सम्मान नहीं करता और सभी प्रकार के लोगों के साथ जीवन बिता लेता है वह ब्राह्मण ना होकर चांडाल है |
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अंत में चाणक्य कहते हैं कि सज्जन और महात्मा व्यक्ति धन को कभी इकठ्ठा नहीं करते वह उसे दान देने की वस्तु समझते हैं | वह इसका प्रयोग धर्म द्वारा यश प्राप्ति के लिए करते हैं | जबकि कंजूस धन का प्रयोग अपने पर और स्वयं पर भी नहीं करते |ऐसा धन नष्ट हो जाता है तब कंजूस के पास पछतावा करने के अलावा कुछ नहीं बचता | दुष्ट के धन की गति भी विषयो के भोग में होती है | विषय भोग क्षणिक होने के कारण अपना फल भी उसी रूप में देते हैं | वह सुख दुख देते हैं |

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