Thursday, July 27, 2017

Chanakya Neeti : Part 9 (चाणक्य नीति : भाग 9)


Everyday Learn New Things : चाणक्य ने मनुष्य को जीवन का लक्ष्य बताते हुए कहा है कि जो व्यक्ति संसार से मुक्त होना चाहते हैं उन्हें विषय वासनाओं का त्याग विष के समान कर देना चाहिए अर्थात बेहिचक | जो नीच मनुष्य दूसरों के प्रति घृणा के कारण कठोर बात बोलते हैं वह नष्ट को हो जाते हैं कोई भी उनका मान सम्मान नहीं करता |

चाणक्य संसार की विचित्र धारणा को व्यक्त करते हुए बताते हैं कि सोने में सुगंध नहीं होती, ईख पर फल नहीं लगता, चंदन के वृक्ष पर फूल नहीं लगते, विद्वान व्यक्ति के पास धन नहीं होता और राजा को प्राय अधिक आयु नहीं मिलती यह बातें देखकर ऐसा लगता है कि परमेश्वर ने यह काम करते हुए बुद्धि का सहारा नहीं लिया अर्थात भूल तो किसी से भी हो सकती है काश परमात्मा ने ऐसा किया होता |

चाणक्य कहते हैं कि अमृत सबसे उत्तम औषधि होती है क्योंकि इससे मृत्यु रोग से मुक्ति मिल जाती है | सबसे बड़ा सुख भोजन की प्राप्ति है | ज्ञानेंद्रियों में सबसे उत्तम आंखें है और शरीर के अंगों में सबसे श्रेष्ठ मनुष्य का शरीर है |


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ब्राह्मण की विद्वता बताते हुए चाणक्य का कथन है कि आकाश में कोई गया नहीं, सूर्य चंद्रमा तक कोई पहुंचा नहीं परंतु जिस विद्वान ब्राह्मण ने उनकी गति, उनके ग्रहण से संबंधित ज्ञान दिया है और भविष्यवाणी की है उसे विद्वान मानने में संकोच नहीं करना चाहिए अर्थात पृथ्वी पर बैठे-बैठे जिसने इन आकाशीय घटनाओं का पूरी तरह से सही आकलन कर लिया वह अवश्य ही सराहनीय योग्य है |

चाणक्य ने अनेक स्थानों पर कहा है कि व्यक्ति को संसार में सतर्क होकर जीवन बिताना चाहिए विद्यार्थी, नौकर, यात्री और भूख से दुखी, डरा हुआ व्यक्ति और द्वार रक्षक इन्हें सदा जागते रहना चाहिए यदि इन्हें सोता देखें तो इन्हें जगा दे | लेकिन राजा, सांप, बाघ, जंगली सूअर और दूसरे का कुत्ता तथा मूर्ख व्यक्ति यदि सोए पड़े हो तो इन्हें जगाना नहीं चाहिए यह सोए हुए ही हितकारी हैं |
इस अध्याय में आचार्य चाणक्य ने ब्राह्मणों के संबंध में कहा है कि उन्हें पतित लोगों से किसी भी प्रकार की सहायता नहीं लेनी चाहिए क्योंकि ऐसे लोगों के स्वार्थ भी तुछ ही होते हैं |


आचार्य का कहना है कि मनुष्य को अपना वास्तविक स्वभाव नहीं छोड़ना चाहिए अर्थात यदि सांप विषरहित है तो भी उसे अपने पर आक्रमण करने वाले को डराने के लिए फन फैलाते रहना चाहिए इसका अर्थ यह है कि आडंबर से भी  दूसरे व्यक्तियों को प्रभावित किया जा सकता है किसी संत द्वारा सर्प को दिया गया यह उपदेश सभी ने पढ़ा सुना होगा कि  फुफकारना जरूर चाहिए भले ही डसने का मन ना हो |

मूर्खों को इस बात का ज्ञान नहीं होता कि किस समय कौन सा कार्य किया जाए वह प्रात काल ही जुआ आदि खेलने लगते हैं | दोपहर का समय भोग-विलास, रात्रि का समय चोरी आदि बुरे कामों में बिताते हैं | यह तीनों कार्य धर्म और कानून दोनों दृष्टि से गलत हैं | इनसे धन और सम्मान की हानि होती है | सबसे बढ़कर इनसे आत्मा का पतन होता है | चाणक्य का कहना है कि प्रभु की उपासना व्यक्ति को स्वयं करनी चाहिए जिस प्रकार भूख-प्यास तभी शांत होती है जब आप स्वयं भोजन खाते हैं और पानी पीते हैं | उसी प्रकार आपके द्वारा किए गए शुभ कर्म ईश्वर उपासना आदि तभी पूरी तरह से फल देता है जब आप उसे खुद करते हैं | व्यक्ति को कष्टों के समय में धैर्य रखना चाहिए | धैर्य दुख को कम ही नहीं करता बल्कि सुख को भी साथ के साथ उजागर कर देता है ऐसे में दुख, दुख रहता ही नहीं | इस प्रकार मनुष्य का सबसे सर्वाधिक महत्वपूर्ण गुण धैर्य है |

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