Everyday Learn New Things : चाणक्य ने विद्या रूपी धन को सबसे श्रेष्ठ धन माना है उनका कहना है कि जिस मनुष्य के पास विद्या रूपी धन नहीं उसके पास सब कुछ होते हुए भी वह हीन है | पहले सोचें फिर करे चाणक्य ऐसा करने की सलाह देते हैं | करने के बाद सोचने का तो कोई अर्थ ही नहीं है | विद्यार्थी के कर्तव्य की ओर ध्यान दिलाते हुए आचार्य फिर कहते हैं कि जो विद्यार्थी विद्या प्राप्त करना चाहता है उसे सुख की अभिलाषा छोड़ देनी चाहिए |
चाणक्य का कहना है कि व्यक्ति पुरुषार्थ के बावजूद भाग्य से ही निर्धन से धनी होता है इस प्रकार जीवन में भाग्य की महत्वपूर्ण भूमिका है नियति की गति को समझना ही बुद्धिमता है |
चाणक्य यहां फिर कहते हैं कि मनुष्य को विद्या रूपी धन प्राप्त करना चाहिए , धर्म से युक्त होना चाहिए परंतु जिस मनुष्य में ऐसी कोई बात नहीं है वह पृथ्वी पर पशु के समान है और भार रूप है | व्यक्ति को अपनी भीतरी योग्यता का ज्ञान होना चाहिए जिसमें भीतरी योग्यता नहीं और जो बुद्धिहीन है | वेद आदि शास्त्रों से भी उसका कल्याण नहीं हो सकता चाणक्य कहते हैं कि दुष्ट व्यक्ति सदा दुष्ट ही रहता है वह अपना स्वभाव कभी नहीं छोड़ता |
अपने बंधु बांधवों, रिश्तेदारों में मनुष्य को निर्धन हो कर अपना जीवन भी नहीं बिताना चाहिए उसे चाहिए कि वह अपने निर्धनता दूर करने का प्रयत्न करें | चाणक्य ने इस संसार के रंग ढंग का वर्णन करते हुए कहां है कि जिस प्रकार साय: काल के समय अनेक पक्षी एक वृक्ष पर आकर बसेरा लेते हैं और प्रातः काल अपनी दिशाओं में उड़ जाते हैं उसी प्रकार बंधु-बांधव भी मनुष्य को सहयोग से ही मिलते हैं इसलिए उनके बिछड़ने का मनुष्य को शोक नहीं करना चाहिए यह तो प्रकृति का नियम है | चाणक्य मनुष्य की बुद्धि को ही उसका सबसे बड़ा सहायक मानते हैं | उनका कहना है कि जब परमेश्वर ही संसार का पालन करने वाला है तो जीविका की चिंता क्यों |
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