Everyday Learn New Things : चाणक्य ने इस अध्याय में शरीर की दृष्टि से एक समान दिखने वाले मनुष्यों का गुणों और प्रवृति के अनुसार विभाजन किया है | स्वभाव और प्रवृति ही व्यक्ति को उत्तम, मध्यम और निम्न बनाती है | निम्न श्रेणी के लोग जैसे-तैसे धन इकट्ठा करना चाहते हैं | वे ऐसे उपायों से भी धन प्राप्त करना चाहते हैं जिनसे उनका अपमान होता है उन्हें मान अपमान की कोई चिंता नहीं होती | मध्यम श्रेणी के लोग मान सम्मान के साथ-साथ धन इकट्ठा करना चाहते हैं परंतु उत्तम श्रेणी के लोग केवल मान-सम्मान को ही महत्व देते हैं धन उनके लिए गौण होता है मुख्य नहीं |
चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति जिस प्रकार का भोजन करता है जैसा अन्न खाता है उसकी संतान भी वैसी ही होती है यह संकेत है कि भोजन केवल स्वाद या पेट भरने की दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है यह मानव जाति के भविष्य को भी निर्धारित करता है |
चाणक्य ने तीन बातें मृत्यु के समान कष्ट देने वाले बताई हैं वृद्धाअवस्था में मनुष्य की पत्नी की मृत्यु होना, धन संपत्ति का दूसरों के हाथों में जाना और खानपान के लिए दूसरों पर आश्रित रहना | इनमें से दो का अनुभव तो किसी भी अवस्था के व्यक्ति को हो सकता है लेकिन एक का संबंध विशेष अवस्था से है इस ओर संकेत करके आचार्य ने जीवन के कटु सत्य को उजागर किया है इससे उस अवस्था में पुरुष की निरीहता भी प्रकट होती है |
चाणक्य ने व्यक्ति के विचारों और उसकी भावनाओं को अधिक महत्वपूर्ण बताया है उन्होंने कहा है कि लकड़ी, पत्थर और धातु की मूर्तियों की यदि शुद्ध भावना और श्रद्धा से पूजा की जाए तो सब कार्य पूर्ण हो जाते हैं | इन मूर्तियों में भगवान का वास उस रूप में नहीं होता जैसा कि लोग मानते हैं मनुष्य की कुछ भावनाएं अथवा विचार ही मूर्ति को माध्यम बनाकर पूजक का कल्याण करते हैं |
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