Monday, July 17, 2017

Chanakya Neeti : Part 5 (चाणक्य नीति : भाग 5)


चाणक्य ने इस अध्याय में गुरु की महिमा का वर्णन किया है चाणक्य ने यह भी स्पष्ट किया है कि सामान्य जीवन में कौन किसका गुरु होता है चाणक्य का कहना है कि स्त्रियों का गुरु उसका पति होता है ग्रहस्त का गुरु अतिथि होता है ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य का गुरु अग्नि अर्थात अग्निहोत्र हैं और चारों वर्णों का  गुरु ब्राह्मण होता है |



जिस प्रकार सोने को कसौटी पर घिसकर, आग में तपाकर उसकी शुद्धता की परख होती है उसी प्रकार मनुष्य अपने अच्छे कर्मों और गुणों से पहचाना जाता है और प्रतिकूल परिस्थितियों में यह निखरते हैं |

चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य को जीवन में भयभीत होने की आवश्यकता नहीं | उसे निडर होकर कार्य करने चाहिए यदि किसी भय की आशंका हो तो भी घबराना नहीं चाहिए बल्कि संकट आने पर उसका डटकर मुकाबला करना चाहिए |

चाणक्य कहते हैं कि यह आवश्यक नहीं है कि एक ही माता से उत्पन्न होने वाली संतान एक ही प्रकार के स्वभाव वाली हो सब में अलग अलग गुण होते हैं यह व्येक्तिक भिन्नता तो प्रकृति का विशेष गुण हैं |

चाणक्य का मानना है कि कोई भी व्यक्ति वह वस्तु प्राप्त नहीं कर सकता, जिसे प्राप्त करने कि उसमें इच्छा ना हो | जिसे विषय वासनाओं से प्रेम नहीं, वह श्रृंगार  अथवा सुंदरता बढ़ाने वाली वस्तुओं की मांग नहीं करता | जो व्यक्ति बिना किसी लाग-लपेट की स्पष्ट बात कहता है वह कपटी नहीं होता |

विद्या अभ्यास से प्राप्त होती है और आलस्य से नष्ट हो जाती है दूसरे के हाथ में दिया हुआ धन वापस मिलना कठिन होता है और जिस खेत में बीज कम डाला जाता है वह फसल नष्ट हो जाती है |

चाणक्य कहते हैं कि दान देने से धन घटता नहीं दानदाता की दरिद्रता समाप्त होती हैं सद्बुद्धि द्वारा मूर्खता नष्ट होती है और मन में सकारात्मक विचारों से भय समाप्त हो जाते हैं |

मनुष्य में अनेक ऐसे दोष हैं जिनसे उसे अनेक कष्ट उठाने पड़ते हैं चाणक्य कहते हैं कि कामवासना से बढ़कर कोई दूसरा रोग नहीं मोह और क्रोध के समान स्वयं को नष्ट करने वाला कोई शत्रु नहीं चाणक्य का कहना है कि क्रोध व्यक्ति को हर समय जलाता रहता है |

मनुष्य जो कर्म करता है अच्छा या बुरा उसका फल उसे अकेले ही भोगना पड़ता है वह अकेला ही इस संसार में जन्म लेता है और अकेला ही मरता भी है स्वर्ग और नरक में भी वह अकेला ही जाता है केवल कर्म ही उसके साथ जाते हैं |

मनुष्य जब विदेश में जाता है तो उसका ज्ञान और बुद्धि ही साथ देती है | घर में पत्नी ही सच्ची मित्र होती है | औषधि रोगी के लिए हितकर होने के कारण उसकी मित्र हैं | मृत्यु के बाद जब संसार की कोई वस्तु या व्यक्ति मनुष्य का साथ नहीं देता उस समय धर्म ही व्यक्ति का मित्र होता है |

चाणक्य का कहना है कि वर्षा के जल से श्रेष्ठ दूसरा जल नहीं और व्यक्ति का आत्मबल भी उसका सबसे बड़ा बल है | मनुष्य का तेज उसकी आंखें हैं और उसकी सबसे प्रिय वस्तु है अन्य | संसार में कोई भी अपनी स्थिति से संतुष्ट नहीं हैं जो पास में नहीं है उसी की चाह प्रत्येक व्यक्ति करता है गरीब व्यक्ति धन चाहता है पशु वाणी चाहते हैं मनुष्य स्वर्ग की ओर देवत्व को प्राप्त जीव मोक्ष की कामना करते हैं | आचार्य यहां संकेत दे रहे हैं कि देवता भी असुरक्षित हैं उन्हें भी पुण्य समाप्ति के बाद मृत्यु लोक में आना पड़ता है इसलिए वह देवयोनि से भी मुक्त होना चाहते हैं |

सत्य की महत्ता बताते हुए चाणक्य कहते हैं कि सत्य के कारण ही दुनिया के समस्त कार्य व्यापार चल रहे हैं लक्ष्मी, मनुष्य के प्राण और यह संसार सभी नश्वर है केवल धर्म ही शास्वत है अर्थात मनुष्य को अपनी रुचि धर्म में रखनी चाहिए |

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