Saturday, July 22, 2017

Chanakya Neeti : Part 7 (चाणक्य नीति : भाग 7)



Everyday Learn New Things : मनुष्य को कई कारणों से धन का नुकसान होता है | कई कारणों से वह दुखी रहता है | परिवार में कभी कुछ दुःख भी आ जाते हैं तथा कई बार उसे धूर्त लोगों के हाथों से धोखा भी उठाना पड़ता है | चाणक्य का कहना है कि मनुष्य को ऐसी बातों को किसी दूसरे पर प्रकट करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ऐसा करने से जग हंसाई के इलावा कुछ हाथ नहीं आता इससे सामाजिक प्रतिष्ठा पर भी आंच आती है |

जो मनुष्य लेन-देन के संबंध में संकोच करता है उसे हानि उठानी पड़ती है किसी विद्या की प्राप्ति अथवा कोई गुण सीखते समय भी मनुष्य को संकोच नहीं करना चाहिए | यहां संकोच ना करने का अर्थ यह नहीं है कि मनुष्य अत्यंत लोभी हो जाए | मनुष्य को संतोषी होना चाहिए परंतु कुछ बातें ऐसी भी हैं जिनके संबंध में संतोष करने से हानि होती है जैसे विद्या, प्रभु स्मरण और दान आदि |
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आचार्य ने सामान्य आचरण की बातों का भी उल्लेख किया है क्योंकि इनसे व्यक्तिगत रूप से लाभ होता है और सामाजिक प्रतिष्ठा भी प्राप्त होती है जहां दो मनुष्य बात कर रहे हो उनके बीच में नहीं पड़ना चाहिए | इसी प्रकार जब कोई ब्राह्मण हवन आदि कर रहा हो तो उसके बीच से गुजरना ठीक नहीं | हल और बैल के बीच में जो अंतर होता है उसे बनाए रखना चाहिए यदि उस बीच में आने का कोई पर्यतन करेगा तो हल के अगले तीखे भाग से घायल हो जाएगा | अग्नि, गुरु, ब्राह्मण को, कन्या, वृक्ष और बालक को पैर नहीं लगाना चाहिए इन्हें पैर लगाने का अर्थ है उनका अपमान करना | उन्होंने यहां पर यह भी बताया है कि ब्राह्मण को यदि सम्मानपूर्वक भोजन आदि करवा दिया जाए तो वह संतुष्ट हो जाता है | आकाश में  उमड़ते बादलों को देखकर मोर प्रसन होता है | साधु अथवा सज्जन लोग दूसरों का कल्याण होने से प्रसन्न होते हैं परंतु दुष्ट आदमी दूसरे की भलाई नहीं देख सकता उसे इससे कष्ट होता है |



चाणक्य ने यहां समय के अनुकूल आचरण करने की बात कही है | वही वह यह भी कहते हैं कि अपने से बलवान शत्रु को चतुरता पूर्वक अनुकूल व्यवहार करके प्रसन्न करना चाहिए और अपने से कमजोर दिखाई देने वाले शत्रु को भय दिखा कर वश में कर लेना चाहिए | इस प्रकार राजा में चतुरता, विनम्रता और बल का सम्मिश्रण होना चाहिए | ब्राह्मण को अपनी शक्ति वेद आदि शास्त्रों के ज्ञान से बढ़ानी चाहिए जबकि स्त्रियों की शक्ति उनकी मधुर वाणी है |


चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति को अत्यंत सरल और सीधे स्वभाव का भी नहीं होना चाहिए | सीधे व्यक्ति को सब अपने उपयोग में लाना चाहते हैं जिससे उसे अक्सर हानि होती है क्योंकि उसके हित की चिंता किसी को नहीं होती |

आचार्य के अनुसार व्यक्ति को सदैव अपना रूप नहीं बदलते रहना चाहिए और ना ही अपना स्थान | वे कहते हैं कि केवल उसी धनी व्यक्ति का सम्मान समाज में होता है जो उस धन का सदुपयोग करता है अर्थार्थ अच्छे धन को कामों में लगाता है क्योंकि जो अच्छे लोग इस संसार में आते हैं उनमें दान देने की प्रवृत्ति होती है जो कटु भाषण नहीं करते, देवी-देवता तथा ईश्वर की पूजा करते हैं और ब्राह्मणों को भोजन आदि से संतुष्ट रखते हैं वही श्रेष्ठ पुरुष कहलाते हैं इसके विपरीत आचरण करने वाले दुष्टो की श्रेणी में आते हैं |

चाणक्य का कहना है कि मनुष्य को सदैव सज्जनों और अपने से उत्तम पुरुषों की संगति करनी चाहिए अर्थात मनुष्य का लक्ष्य होना चाहिए की वह अपने से श्रेष्ठ व्यक्तियों से संपर्क बनाएं तभी वह संसार में सफल हो सकता है | नीच लोगों के साथ रहने में सदैव हानि होती है |


जिस प्रकार फूलों में सुगंध, तिलो में तेल, लकड़ी में आग, दूध में घी, ईख में गुड़ होने पर भी दिखाई नहीं देता अर्थात ये चीजें इन वस्तुओं में विद्यमान रहती हैं परंतु उन्हें आंख से देखा नहीं जा सकता इसी प्रकार मनुष्य के शरीर में आत्मा विद्यमान रहती है इसे प्रकट करने के लिए विशेष और सुव्यवस्थित प्रयास अर्थात विशेष प्रकार की निरंतर साधना आवश्यक है |

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