Sunday, July 9, 2017

Chanakya Neeti : Part 3 (चाणक्य नीति : भाग 3)


चाणक्य ने मनुष्य के चरित्र के संबंध में कुछ बातें कही है उन्होंने माना है कि अच्छे से अच्छे कुल में कहीं ना कहीं किसी प्रकार का दोष मिल ही जाता है और संसार में ऐसा कौन सा पुरुष है जो कभी रोगों का शिकार ना हुआ हो | इस संसार में लगातार किस को सुख प्राप्त होता है अर्थार्थ कोई सदा सुखी नहीं रह सकता कभी ना कभी वह कष्टों में पड़ता ही है सुख दुख का संबंध दिन-रात की तरह है |


महान व्यक्तियों को और धर्मात्माओं को अनेक कष्ट उठाने पड़ते हैं ऐसा संसार का नियम है | चाणक्य का मानना है कि मनुष्य के आचार व्यवहार से, बोलचाल से, दूसरों के प्रति मान-सम्मान प्रकट करने से उसके कुल की विशिष्टता का ज्ञान होता है |

चाणक्य का मानना है कि पुत्री का विवाह अच्छे परिवार में करना चाहिए और पुत्रों को ऐसी प्रेरणा देनी चाहिए कि वह उच्च शिक्षा प्राप्त करें | शिक्षा ही मनुष्य को जीने की कला सिखाती है|

चाणक्य ने शिक्षा और बुद्धिमता पर अधिक जोर दिया है चाणक्य कहते हैं कि मूर्ख भी सज्जन और बुद्धिमान की तरह दो पैर वाला होता है परंतु वह चार पैर वाले पशु से भी निकृष्ट और गया गुजरा माना जाता है क्योंकि उसके काम हमेशा कष्ट पहुंचाने वाले होते हैं | चाणक्य ने आगे कहा है कि यदि कोई व्यक्ति अच्छे कुल में उत्पन्न हुआ है तथा रूप और यौवन आदि से भी युक्त हैं परंतु उसने विद्या ग्रहण नहीं की तो यह सब उसी प्रकार निरर्थक है जिस प्रकार बिना सुगंध के सुंदर फूल | चाणक्य का मानना है कि किसी का सम्मान उसके गुणों के कारण होता है ना कि रूप और यौवन के कारण | आचरण से संबंधित एक और महत्वपूर्ण बात चाणक्य ने कही है कि यदि किसी एक व्यक्ति के बलिदान से पूरे कुल का कल्याण हो तो उसका बलिदान कर देना चाहिए परंतु उन्होंने मनुष्य को सर्वोपरि माना है वह कहते हैं कि यदि व्यक्ति अपने कल्याण के लिए चाहे तो प्रत्येक वस्तु का बलिदान कर सकता है |
चाणक्य का मानना है कि व्यक्ति को अपनी निर्धनता दूर करने के लिए उधम और पापों से बचने के लिए प्रभु का स्मरण करना चाहिए उन्होंने बार-बार मनुष्य को सचेत तथा सदैव सतर्क किया है | आचरण में आचार्य किसी भी तरह की अति के पक्ष में नहीं है |

चाणक्य के अनुसार मधुर या मीठा भाषण करने वाला व्यक्ति पूरे संसार को अपना बना सकता है | अनेक कुपुत्र होने के बजाय एक सुपुत्र होना कहीं अच्छा है | चाणक्य ने बाल मनोविज्ञान पर भी प्रकाश डाला है | उनका कहना है कि 5 वर्ष तक की आयु के बच्चे से लाड़-दुलार करना चाहिए | इसके बाद की आयु में अनुशासित करने के लिए डांट फटकार, ताड़ना करने की आवश्यकता हो तो वह भी करनी चाहिए परंतु जब बच्चा 16 वर्ष की आयु तक पहुंच जाता है तब उसे मित्र की समान समझ कर व्यवहार करना चाहिए | श्लोक में पुत्र शब्द का प्रयोग संतान के अर्थ में किया गया है | बेटियों के संदर्भ में भी यही नियम लागू होता है |

आचार्य ने बार-बार मनुष्य को यह बताने समझाने का प्रयत्न किया है कि यह मानव शरीर अत्यंत मूल्यवान है व्यक्ति को अपना दायित्व निभाने के लिए धर्म आचरण करते रहना चाहिए |

चाणक्य इस अध्याय के अंत में पूरे समाज को मूर्ख से बचने का परामर्श देते हैं | अपने तथा अन्य उत्पाद को ठीक ढंग से संभाल कर रखना चाहिए और आपस में प्रेम पूर्वक रहना चाहिए झगड़े फसाद में अपना जीवन नष्ट नहीं करना चाहिए ऐसा करके हम स्वयं को दुख के गर्त में डालते हैं |


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